चौसा गढ़ उत्खनन में मिले भारत के नामकरण के दुर्लभ साक्ष्य, संगोष्ठी में डॉ. द्विवेदी वक्तव्य
बक्सर। सीताराम उपाध्याय संग्रहालय, बक्सर में विश्व विरासत सप्ताह के तहत आयोजित संगोष्ठी में संग्रहालय के पूर्व निदेशक डॉ. उमेश चन्द्र द्विवेदी ने कहा कि भारत के नामकरण से जुड़े प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य चौसा गढ़ से मिले हैं। उनके निर्देशन में 2011 से 2014 तक हुए उत्खनन में यह प्रमाणित हुआ कि बक्सर में तीन हजार वर्ष पूर्व उन्नत संस्कृति विकसित थी। यहां मिली मृण्मूर्तियों में दो सौ प्रकार के केश विन्यास पाए गए, जिन्हें कला इतिहासकारों ने अद्वितीय बताया है। उन्होंने बताया कि 1931 में चौसा से जैन धर्म की दुर्लभ कांस्य प्रतिमाएं तथा रामायण आधारित मृण्मूर्तियां मिली थीं। उत्खनन से टेराकोटा से निर्मित प्राचीन हिंदू मंदिर के अवशेष भी मिले। शिव-पार्वती परिणय, कुम्भकर्ण वध, सीताहरण जैसे कई दुर्लभ फलक तथा ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य आदि की प्रस्तर प्रतिमाएं भी प्राप्त हुईं। डॉ. लक्ष्मी कांत मुकुल ने विकास हेतु कार्ययोजना प्रस्तुत की, जबकि संचालन संग्रहालय प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. जवाहर लाल वर्मा, प्रोफेसर पंकज चौधरी, प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार, बसंत चौबे, पत्रकार राम मुरारी, शशांक शेखर, मुस्ताक बंटी, राजू ठाकुर, पुरुषोत्तम पाण्डेय, नरेंद्र प्रकाश दूबे, रौशनी सिंह, मीता कुमारी, स्मिता कुमारी, रूबी कुमारी, अनीता कुमारी, मधु, रजनी श्रीवास्तव, डाॅ. नागेन्द्र मिश्र, नुजहत फातिमा, ऋषि कुमार तिवारी, अनिकेत कुमार, मोहम्मद आशिक, रामरूप ठाकुर, अभिषेक चैबे अभिनंदन कुमार के अलावा अनेक शिक्षक शिक्षिकाओं सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित हुए।










